नेहा

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लेखनी प्रतियोगिता -07-Apr-2022बदलते वक्त का बोझ

बदलते वक्त का बोझ हमें ढोने नहीं आता,

 कि पत्थर हो चुके हैं हम ,
हमें रोने नहीं आता,
 भरोसा खुद पर ना हमको,
 ना खुद्दार लोगों पर ,
ना जाने क्यों किसी का अब हमें होना नहीं आता,
 मंजिलें मिल नहीं पाती,
होते हैं हम रश्ते में,
 मेहनत से पाई डिग्रीयाँ भी,
बीक जाती है सस्ते में,
ना जाने क्यूँ न जाने क्यों निकम्मो सा,
मुझे सोना नही आता,
बदलते वक्त का बोझ हमें ढोना नहीं आता,
 कि पत्थर हो चुके हैं हम ,
हमें रोना नहीं आता |

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8 Comments

Sachin dev

14-Apr-2022 12:39 AM

Nice 👍🏼

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Punam verma

08-Apr-2022 08:13 AM

Nice

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Abhinav ji

07-Apr-2022 11:59 PM

Very nice👍

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